Monday, July 7, 2014

उड़द उत्पादन की उन्नत तकनीक



लेखक द्वय: 

डॉ.प्रशान्त श्रीवास्तव
एस.एम.एस (कृषि विस्तार)
कृषि विज्ञान केन्द्र – छतरपुर (म.प्र), भारत
ई-मेल:,prasantdgg@gmail.com
श्री.कमलेश अहिरवार
ब्लॉक टैक्नोलॉजी मैनेजर,
आत्मा परियोजना – छतरपुर   












उड़द मध्य प्रदेश की महत्तवपूर्ण खरीफ, दलहनी फसल है. इसकी काश्त खरीफ एवं ज़ायद में शुद्ध अथवा अन्तर्वतीय फसल के रूप में की जा सकती है. इसकी दाल अत्यंत पौष्टिक होती है. यह प्रोटीन (24 %) कार्बोज़ (60 %) तथा फॉस्फोरस का अच्छा स्त्रोत होता है. चूँकि यह दलहनी फसल है अत: यह मृदा में नत्रजन की आपूर्ति करती है इसके अतिरिक्त इसका उपयोग हरी खाद के रूप में भी किया जाता है.
भूमि का चुनाव एवं खेत की तैयारी:
उड़द की खेती प्रत्येक प्रकार की भूमि में की जा सकती है. परन्तु उत्तम जल निकास वाली हल्की रेतीली या मध्यम प्रकार की भूमि उड़द की फसल के लिए उपयुक्त है. भूमि की तैयारी के लिए एक जुताई गहरी मिट्टी पलटने वाले हल से कर 2-3 जुताईयाँ देशी हल या कल्टीवेटर से कर खेत को समतल एवं भुर-भुरा बना लें.
बीजोपचार:
बीज का बोने के पूर्व फफूँदनाशक, जैसे कैप्टान अथवा थीरम 2.5 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से बीजोपचार करें जिससे बीज फफूँद के प्रति सुरक्षित हो जाये. इसके पश्चात् बीज को रायज़ोबियम कल्चर (1500 ग्राम) तथा 1200 ग्राम पी.एस.बी. कल्चर प्रति हेक्टेयर बीज से उपचारित करें जिससे पौधे खाद का उपयोग उचित ढंग से कर सकें.  
बीज दर :
उड़द के अच्छे उत्पादन के लिए खरीफ ऋतु में 12-15 किलो प्रति हेक्टयर की बीज दर तथा ग्रीष्म ऋतु में 20 से 25 किलो बीज दर प्रति हेक्टेयर पर्याप्त है.
बोनी का समय एवं विधि:
उड़द की फसल की बुवाई मानसून आधारित है. उड़द की बुवाई जून के अंतिम सप्ताह से जुलाई के प्रथम सप्ताह के बीच करें.
 बोनी, नारी या तिफन से कतारों में करें. कतारों से कतार की दूरी 30-45 से.मी. तथा पौधे से पौधे की दूरी 10 सेमी. और बीज की गहराई 4-5 सेमी. रखें.
किस्म:
1.            पी.यू.-30:
इसके दाने काले मध्यम आकार के होते हैं. फसल पकने की अवधि 70-80 दिन, औसत उपज 10-12 किलो/हे. है. पीला मोज़ैक तथा पाऊडरी मिल्डयू रोधक है.
2.            जवाहर उड़द-86         
पीला मोज़ैक सहनशील, दाने पकने की अवधि 70 दिन तथा उपज 15-20 कु./हे. है.
3.            एल.वी.-20      
पीला मोजेक प्रतिरोधी, दाना काला तथा उत्पादन 10-12 कु. प्रति हे. है.
4.            पन्त यू.-19    
यह किस्म लगभग 80-85 दिन में पक कर तैयार हो जाती है. इसे ग्रीष्म तथा खरीफ दोनों ही मौसमों में उगाई जा सकता है.
खाद व उर्वरक:
उड़द की फसल एक दलहनी फसल होने के कारण अधिक नत्रजन की आवश्यकता नही होती है क्योकि उड़द के पौधे की जड़ ग्राथियाँ में उपस्थित राइजोबियम जीवाणु वायुमण्डल की स्वतंत्र नत्रजन को ग्रहण करते हैं और पौधों को प्रदान करते हैं.
पौधे की प्रारम्भिक अवस्था में जड़ों एंव जड़ ग्रथियों की वृद्धि एवं विकास के लिए 15-20 किलो नत्रजन, 40-50 किलो ग्राम फास्फोरस तथा 40 किलो पोटाश प्रति हेक्टेयर दें. उर्वरक की सम्पूर्ण मात्रा बुवाई के समय कुड़ों में बीजो से 2-3 सेमी. नीचे गहराई पर दें.
निंदाई, गुड़ाई व खरपतवार नियंत्रण:
वर्षा कालीन उड़द की फसल ये खरपतवार का प्रकोप बहुत अधिक मात्रा में होता है. जिससे उपज में 40-50 तक हानि हो जाती है. उड़द के पौधे की ऊँचाई कम होने के कारण खरपतवार, फसल को पूरी तरह से ढक लेते हैं.  ऐसी परिस्थिति में फसल-बुवाई के 15-20 दिन की अवस्था पर पहली निंदाई तथा गुडाई हाथों द्वारा खुरपी की सहायता से करें. खरपतवारों का प्रकोप होने पर पुनः 15 दिनों बाद निंदाई करें. रासायनिक विधि द्वारा खरपतवार नियंत्रण के लिये फ्लूक्लोरेलिन (वासालीन) 1 किलोग्राम सक्रीय तत्व प्रति हेक्टेयर की दर से 800 से 1000 लीटर पानी में घोल कर बुवाई के पूर्व खेत में छिड़काव करें. फसल की बुवाई के बाद परन्तु बीजों के अंकुरण के पूर्व पेन्डीमिथलीन 1.25 कि.ग्रा. सक्रिय तत्व प्रति हे. की दर से 800 से 1000 ली. पानी में घोल कर छिड़काव कर खरपतवारों का नियंत्रण करें.
रोग एवं नियंत्रण:
1.         पीला मोजेक:
    उड़द की फसल का यह प्रमुख रोग है जिसके उपज में बहुत अधिक हानि होती है. रोग के प्रथम लक्षण पत्तियों पर गोलाकार पीले धब्बे के रूप में दिखाई देता है. ये दाग एक साथ मिलकर तेजी से फैलते है, जिससे पत्तियों पर पीले धब्बे हरे धब्बे के अगल-बगल दिखाई देते हैं. जो बाद में बिल्कुल पीले हो जाते हैं. नई निकलती हुई पत्तियों में ये लक्षण आरम्भ से ही दिखाई देते है यह रोग सफेद मक्खी द्वारा फैलता है. रोग नियंत्रण हेतु प्रतिरोधक जातियाँ जैसे पी.यू.-19, पी.यू.-30 तथा पी.यू.-35, लगायें. खड़ी फसल में नियंत्रण हेतु आक्सीमिथाईल डिमेटान 35 ई.सी. की 400 मि.ली. मात्रा को 200 ली. पानी में मिलाकर प्रति एकड़ छिड़काव करें.
2.         भूभूतिया या पर्णदाग:
यह रोग प्रारम्भिक अवस्था में आता है. इस कारण पौधे पूर्ण रूप से सूख जाते हैं, तथा पत्तियों शाखाओं और फलियों पर सफेद चूर्ण सा दिखाई देता है इसके नियंत्रण के लिये घुलनशील गंधक 200 ली. पानी में अथवा 100 ग्राम कार्बंडाज़िम को 200 ली. पानी में घोलकर प्रति एकड़ छिड़काव करें.
कीट नियंत्रण:
फली बीटल:
यह कीट भूरा व काला होता है जो पत्तियों को कुतर कर गोल छेद बनाता है जिससे पत्तियाँ छलनी जैसी दिखाई देती हैं. इस कीट की इल्लियाँ बीज पत्र तथा छोटे पौधों की पत्तियों में छेद करते हुये खाती हैं. इस रोग के नियंत्रण के लिये क्विनालफॉस 1.5 प्रतिशत, अथवा थायोडॉन 4 प्रतिशत डस्ट 20 किलोग्राम प्रति हे. 15 दिन के अन्तर से दो बार छिड़कें.
कटाई एवं मड़ाई:
पकने के समय उड़द की फलियाँ हरे रंग में परिवर्तित होने लगती हैं. ऐसे समय पर फसल की कटाई करें. उड़द  की कुछ प्रजातियों में फलियाँ एक समय पर नहीं पकती हैं अतः इन प्रजातियों की फलियों की 2-3 बार में तुडाई करें.
उड़द  की फसल बोने के 85-90 दिन में पक कर तैयार हो जाती है. खरीफ मौसम में जून-जुलाई में बोई गई फसल सितम्बर-अक्टूबर में कटाई योग्य हो जाती है. उड़द  की वह प्रजातियाँ जिनकी फलियां एक साथ पकती हैं उनकी कटाई हँसिये की सहायता से कर खलिहान में ही फसल सुखायें. इसके पश्चात् डण्डों से पीट कर अथवा बैलों या ट्रेक्टर द्वारा मड़ाई करें.
उपज:
उड़द  की शुद्व फसल से उपज 10 से 15 क्विंट्ल/हेक्टेयर तक प्राप्त करें. उड़द  के दानों को अच्छी तरह सुखाने के बाद, जब दानों में 10 से 12 प्रतिशत नमी रह जाये तब सुरक्षित स्थान पर भण्डारित करें.

6 comments:

Unknown said...

महेंद्र सिंह बांदरी जिला-सागर मध्यप्रदेश
उड़द की पत्तियां पीली पड़ जाती है और हमारा बहुत हानि उठानी पड़ती है कौन सी क़िस्म बोये की रोग काम लगे और हम को ज्यादा लाभ मिले मुझे इस नंबर पर
जानकारी दे mob no 7697543083

Unknown said...

क्या सर उड़द की खेती राजस्थान की जलवायु मे भी सम्भव हैहै तो कौनसी प्रजाति उपयुक्त है !

डॉ चन्द्रजीत सिंह एवं डॉ. किंजल्क सी. सिंह said...

कृप्या आप दोनो ही किसान भाई. 09893064376 नम्बर पर हमे फोन करें ताकि हम आपकी सहायता करें.
आप इस नम्बर पर व्हॉट्स ऐप मैसेज भी कर सकते हैं.
सादर
डॉ. चन्द्रजीत सिंह

Unknown said...

महोदय क्या आपका नंबर अभी भी सक्रिय है

Unknown said...

Jawahar Udan 86 kahan se milegi

कृषि समाधान said...

जी भय्या हमारा फोन नम्बर और वॉट्स ऐप नम्बर यही है, जय बाबा सदा 💐💐