Tuesday, June 7, 2011

धान की खेती की महत्वपूर्ण अनुशंसायें

1.            प्रदेश के बालाघाट, रीवा, सतना, सीधी, शहडोल, उमरिया, कटनी, जबलपुर, सिवनी, डिंडोरी, मण्डला व पन्ना जिलों के अधिकांश  क्षेत्रों में धान की खेती प्रमुखता से की जाती है, जबकि दमोह, ग्वालियर, नरसिंहपुर, छतरपुर, टीकमगढ़, छिन्दवाडा़, बैतूल, होशंगाबाद व रायसेन जिलों के कुछ सीमित क्षेत्रों में धान की खेती होती है ।
2.            धान की फसल बिना बंधान वाले एवं हल्की बंधान वाले खेत की दशाओं में खेती की जाती है ।
3.            रोपा विधि से खेती के लिये रोपणी बनाकर 8-12 जून तक रोपणी की बुआई करें ताकि समय पर रोपाई कार्य हो सकें । रोपणी में 12-13 कि. बीज प्रति एकड़ बोना चाहिये संकर धान का बीज 6 कि. प्रति एकड़ प्रयोग करें ।
4.            उन्नत किस्मों का प्रयोग करें । अतिशीघ्र पकने वाली किस्में-कलिंगा-3, वंदना 1, शीघ्र पकने वाली - जवाहर धान 201 पूर्णिमा, जे.आर.एच.-5 (संकर), मध्यम समय में पकने वाली - आई.आर.36, आई.आर. 64, पूसा सुंगधा-5, एम.टी.यू.1001, देर से पकने वाली- माहसुरी, सफरी-17, शामला, स्वर्णा का प्रयोग करें ।
5.            धान की सीधी बोनी की दशा में बुआई का कार्य वर्षा आरम्भ होते ही जून मध्य से जुलाई प्रथम सप्ताह तक कर दें । धान की कतार में बेानी करें 20 से.मी. कतार से कतार दूरी रखना चाहिये ।
6.            बोनी के पूर्व 3-4 टन प्रति एकड़ अच्छी सड़ी गोबर की खाद या कम्पोस्ट खाद का उपयोग अवश्य करें । कतार से बोनी वाली धान में 3-4 कि./हे. एजेटोबैक्टर और पी.एस.बी. कल्चर का उपयेाग करें ।
7.            शीघ्र पकने वाली किस्मों में नत्रजन 40, स्फुर 20-30 एवं पोटाश  20, मध्यम अवधि में पकने वाली किस्मों के लिये नत्रजन 80-100, स्फुर 30-40, पोटाश  20-25 तथा देर से पकने वाली किस्मों में नत्रजन 100-120, स्फुर 50-60, पोटाश  30-40 किलो संतुलित उर्वरक दे।
8.            स्फुर, पोटाश  एवं जिंक सल्फेट की पूरी मात्रा बीजू धान में बोवाई तथा रोपाई वाली धान में रोपाई के समय पर देना आवश्यक है । नत्रजन बुवाई के समय न देकर 15-20 दिनांे बाद निंदाई करके या रोपाई के 6-7 दिनों बाद देवें, इसमें नत्रजन उपयेाग की क्षमता बढ़ती है। नत्रजन की मात्रा तीन बराबर भागों में दें, दूसरी मात्रा 35-40 दिन में व तीसरी मात्रा 55-60 दिन की अवस्था में देनी चाहिये ।
9.            सूखे खेत में नत्रजन ना दें, निंदाई के बाद ही नत्रजन देवें। गीले पौधों पर यूरिया छिटककर ना दें, कतार में पौधों के जड़ के पास देवें ।
10.        खेत को नींदा रहित रखें, खड़ी फसल में दो बार 20-25 दिन और 40-45 दिन की अवस्था पर निंदाई अवश्य करें । रासायनिक निंदा नियन्त्रण के लिये ब्युटाक्लोर 1 कि./एकड़ सक्रिय सत्व 500 लि. पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें, 20-25 दिनों तक तक नींदा का नियंत्रण करें.  
11.        धान की पत्ती खाने वाले व तना छेदक कीटों के नियन्त्रण के लिये क्लोरोपायरीफॉस 400 मि.ली. या मिथोमिल 40 एस.पी. 400 ग्राम/एकड की दर से छिडकाव करें ।
12.        धान का प्रमुख झुलसा रोग लगने पर नियन्त्रण हेतु हिनोसान 1 मिली प्रति लीटर पानी की दर से छिडकाव करें । 

महिलाओं द्वारा बीज का अंकुरण परीक्षण


कृषि में में बहनों का बहुत बड़ा योगदान होता है. ऐसा देखा गया है कि जहाँ बहनें भी खेती में हाथ बँटाती हैं वहाँ उपज बेहतर होती है. ग्रामीण परिवार खरीफ के मौसम की फसलों की तैयारी में जुट गये हैं ऐसे में सोयाबीन की खेती में अधिक उपज के लिये कृषक बनें यदि निम्ंलिखित बातों पर ध्यान देती हैं तो निश्चित ही बेहतर उपज प्राप्त कर सकेंगी:
1.       गहरी जुताई:
बहनें तीन साल में एक बार किये जानी वाली गहरी जुताई के लिये पर्याप्त राशि जमा करें.
नौतपे के पहले, तीन साल में एक बार गहरी जुताई करवाने के लिये घर में किसान भाई को याद दिलायें और एकत्रित की हुई राशि उन्हें सौपें.
सुनिश्च्त करें की समय पर बगहरी जुताई हो जाये.
2.       अंकुरण परीक्षण के लिये बीज का नमूना कैसे तैयार करें:
·      बीज की बोरी की ऊपरी सतह से पहली मुठ्ठी और सबसे नीचे से पाँचवीं मुठ्ठी बीज निकालें. बीच की सतह से क्रमशः दूसरी, तीसरी और चौथी मुठ्ठी बीज निकालें.
·      इन्हें सूप अथवा थाली में रख कर अच्छी प्रकार से मिला लें.
·      आँख मूंद कर इन बीजों से सौ दाने निकाल लें.
3.       अंकुरण परीक्षण की विधि:
·  इन बीजों को दस दस दानों की दस कतार में गीले जूट के बोरे पर रख दें.
·  ऊपर से एक और गीले जूट के बोरे से ढक दें.
·  इन बोरीयों को सुरक्षित स्थान पर 48 घंटे के लिये रख दें.
·  इन बोरीयों को लगातार गीला रखें.
·  इसके उपरांत ऊपर वाली बोरी को हटाकर:
·  स्वस्थ अंकुरित बीज गिन लें
·  अंकुरित बीजों में से कमजोर अंकुर वाले बीज गिन लें
·  बिना अंकुरित हुए बीज गिन लें
·  कमज़ोर अंकुरों को भी गिन लें
4.       अंकुरण परीक्षण का परिणाम:
·      यदि 100 में से 75 से अधिक दाने स्वस्थ रूप से अंकुरित होते हैं तो 32 किलो सोयाबीन प्रति एकड़ बीज दर रखें.
·      यदि 70 दानों में ही अंकुरण बीच होता है तो बीज दर 5 किलो बढ़ा दें. अर्थात प्रति एकड़ 37 से 40 किलो प्रति एकड़ बीज बोयें.
·      यदि 70 से कम बीज अंकुरित हों तो बीज की छनाई करें तथा बदरंगे अथवा अलग किस्म के दिखने वाले दानों की बिनाई कर अलग करें.
·      अब बीज को उपचारित कर बुवाई करें.
5.       बीज का कल्चर द्वारा उपचार:
बोनी पूर्व 1 एकड़ के बीज का उपचार 3 पैकेट पी.एस.बी (600 ग्राम) तथा 1 पैकेट राईजोबियम (250 ग्राम) कल्चर से उपचारित करें यह उपचार शिशु को पोलियो का टीका लगाने के समान है।
(कृपया अपने ज़िले के क़ृषि विज्ञान क़ेन्द्र से प्राप्त जवाहर कल्चर का ही उपयोग करें.)
6.       फफून्द नाशक द्वारा बीज का उपचार:
फफून्द नाशी दवा 2 ग्राम थीरम + 1 ग्राम बैविस्टीन / किलो बीज की दर से उपचारित करें
7.       बीज का उपचार की विधि:
·  पर्याप्त मात्रा में प्लास्टिक की बोरी में बीज लें.
·  इसमें पानी छींट कर हल्का गीला कर लें.
·  बताई गई मात्रा में फफून्द नाशक डालें.
·  बोरी का मुँह बंद कर दो बहनें दोनों छोरों से बोरी को पकड़ कर ज़ोर से हिलायें.
·  इसके उपरांत बताई गई मात्रा में फिर कल्चर को डालें.
·  बोरी का मुँह बंद कर दो बहनें दोनों छोरों से बोरी को पकड़ कर एक बार फिर ज़ोर से हिलायें.
·  अब बीज को बोने के लिये कृषक भाई को दें.
8.       महिला कृषक बहनों से निवेदन कि वे किसान भाईयों को याद दिलायें कि किसान भाई :
  • सोयाबीन की बोवाई कतार में करें तथा कतार से कतार की दूरी 12 - 14 इंच रखें इस तरह से बोनी के लिये सीड ड्रिल की एक कुसिया को बन्द करें और एक को खुली छोड़ें. और फिर बोनी करें.
  • मेड़ नाली सीड ड्रिल का उपयोग और लाभकारी होगा.
  • दस कतार के बाद एक कतार खाली छोड़ें, इस जगह का इस्तेमाल ऊँचे जूते पहन कर दवाई  छिड़कने के लिये करें।